Maha Kumbh 2025 History: आखिर कितना पुराना है महाकुंभ मेला का इतिहास
कुंभ का वर्णन वेद-पुराणों में भी मिलता है। जिसमें वर्णित कथा के अनुसार कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से माना गया है। कहा जाता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। जहां कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होता है वहीं महाकुंभ 12 कुंभ मेले के बाद यानी 144 साल में लगता है।
महा कुंभ मेला रीति-रिवाज़ों से जुड़ा एक विशाल आयोजन होता है, जिसमें स्नान समारोह सबसे महत्वपूर्ण होता है। त्रिवेणी संगम में, लाखों तीर्थयात्री इस पवित्र प्रथा में हिस्सा लेने के लिए एक साथ एकत्रित होते हैं। लोगों का यह मानना है कि इस पवित्र जल में डुबकी लगाने से, वे अपने सभी पापों से मुक्त हो सकते हैं, खुद को और अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर सकते हैं, और अंततः मोक्ष या आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
महाकुंभ मेला (पवित्र कलश का उत्सव) हिंदू पौराणिक कथाओं में आधारित है। यह दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक आयोजन और सामूहिक आस्था का कार्य है। इस आयोजन में मुख्य रूप से संन्यासी, साधु, संत, साध्वी, कल्पवासी और विभिन्न वर्गों से आए तीर्थयात्री शामिल होते हैं।
हिंदू धर्म में कुंभ मेला एक धार्मिक तीर्थयात्रा है, जो 12 वर्षों के अंतराल में चार बार मनाई जाती है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत के चार स्थानों पर स्थित है, और मेला इन चार पवित्र नदियों के तीर्थस्थलों में से एक पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है:
- उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर
- मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर
- महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के तट पर
- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर
प्रत्येक स्थान का आयोजन सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की विशेष खगोलीय स्थितियों पर आधारित होता है। यह आयोजन उस समय होता है जब ये स्थितियां पूरी तरह से उपस्थित होती हैं, जिसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्म, धार्मिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समेटे हुए है, जो इसे ज्ञान का एक समृद्ध केंद्र बनाता है।
कुंभ मेले में तीर्थयात्री हर वर्ग से आते हैं, जिसमें साधु-संत, नागा साधु जो साधना करते हैं और सख्त आध्यात्मिक अनुशासन का पालन करते हैं, वे सन्यासी जो अपनी एकांत साधना छोड़कर सिर्फ कुंभ मेले में आते हैं, आध्यात्मिकता के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग शामिल हैं।
कुंभ मेले के दौरान कई प्रकार के समारोह आयोजित होते हैं, जैसे अखाड़ों की पारंपरिक पेशवाई (हाथी, घोड़े और रथ पर जुलूस), नागा साधुओं की शाही स्नान के दौरान चमचमाती तलवारें और अनुष्ठान, और अन्य कई सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेला में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।
महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक होगा।
कुंभ की पौराणिक कथा (Maha kumbh katha)
पौराणिक कथा के मुताबिक, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन के दौरान कई तरह के रत्न उत्पन्न हुए, जिन्हें देवताओं और असुरों ने बांट लिया। समुद्र मंथन के आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए।
अमृत पाने की लालसा में देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया। इस छीना-झपती में अमृत की कुछ बूंदें धरती के 4 स्थानों, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। माना जाता है कि तभी से इन चार स्थानों पर हर 12 साल के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है।
अलग-अलग हैं मान्यताएं (Kumbh Mela history)
पहली बार कुंभ का आयोजन कब हुआ, इसे लेकर कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता। प्रथम कुंभ आयोजन की तारीख को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, 7वीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने अपने एक यात्रा विवरण में कुंभ का वर्णन किया है।
इस यात्रा विवरण में उन्होंने प्रयागराज के कुंभ महोत्सव के दौरान संगम पर स्नान का उल्लेख करते हुए इसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थल बताया है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 8वीं शताब्दी में भारतीय गुरु तथा दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की थी।
हालांकि, प्रयागराज महा कुंभ के दौरान पौष पूर्णिमा की शुरुआत के बाद से पवित्र जल में डुबकी लगाना शुभ माना जाता है, लेकिन कुछ तारीखें हैं जिनका खास महत्व है। इन तारीखों पर शानदार जुलूस निकाले जाते हैं, जिसमें संत, उनके शिष्य और विभिन्न अखाड़ों (धार्मिक समाज) के सदस्य शामिल होते हैं। वे शाही स्नान के नाम से लोकप्रिय भव्य अनुष्ठान में हिस्सा लेते हैं, जिसे ‘राजयोगी स्नान’ भी कहा जाता है, जिससे महा कुंभ मेले की शुरुआत होती है। राजयोगी स्नान, कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण होता है और यह जश्न के सबसे भव्य रूप को दर्शाता है।
- पौष पूर्णिमा: 13 जनवरी 2025
- मकर संक्रांति: 14 जनवरी 2025
- मौनी अमावस्या: 29 जनवरी 2025
- बसंत पंचमी: 03 फरवरी 2025
- माघी पूर्णिमा: 12 फरवरी 2025
- महा शिवरात्रि: 26 फरवरी 2025
महा कुंभ 2025, एक पवित्र तीर्थ यात्रा और आस्था का जश्न है, जिसमें दुनिया के हर कोने से लाखों श्रद्धालु और यात्री आते हैं। जब आप इस बेहद खास यात्रा को शुरू करते हैं, तो आपको ऐसे बहुत सारे आकर्षण मिलेंगे, जो महा कुंभ को एक अनोखा और भव्य आयोजन बनाते हैं।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। वेबसाइट और टीम यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें।
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