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शारदीय नवरात्रि : शक्ति की उपासना और सांस्कृतिक धरोहर | Shardiya Navratri : Shakti ki Upasana aur Sanskritik Darohar

शारदीय नवरात्रि Shardiya Navratri का त्योहार हर वर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है, जो शारद ऋतु में आता है। यह नौ दिवसीय उत्सव मां दुर्गा की आराधना को समर्पित होता है, जहां भक्तजन देवी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।

Nav Durga Navratri

शारदीय नवरात्रि शक्ति की उपासना | Sharadiya Navratri  Shakti ki Upasana

शारदीय नवरात्रि का त्योहार हर वर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है, जो शारद ऋतु में आता है। यह नौ दिवसीय उत्सव मां दुर्गा की आराधना को समर्पित होता है, जहां भक्तजन देवी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।

नवरात्रि का धार्मिक महत्व | Navratri Ka Dharmik Mahatva

नवरात्रि का अर्थ है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है:

  1. शैलपुत्री
  2. ब्रह्मचारिणी
  3. चंद्रघंटा
  4. कूष्मांडा
  5. स्कंदमाता
  6. कात्यायनी
  7. कालरात्रि
  8. महागौरी
  9. सिद्धिदात्री

देवी दुर्गा के नौ स्वरूप

  1. मां शैलपुत्री Maa Shailputri:
    शैलपुत्री मां दुर्गा का प्रथम रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है और उनके इस रूप में प्रकृति और स्थिरता की महिमा छिपी है।
  2. मां ब्रह्मचारिणी Maa Brahmacharni:
    नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। यह रूप साधना और तपस्या का प्रतीक है। मान्यता है कि नारद मुनि ने मां ब्रह्मचारिणी को बताया था कि वे भगवान शिव से विवाह करेंगी, लेकिन इसके लिए उन्हें कठोर तपस्या करनी होगी।
  3. मां चंद्रघंटा Maa Chandraghanta:
    मां चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाती हैं। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है। मां चंद्रघंटा भक्तों के पाप, कष्ट, मानसिक वेदनाओं और भूत-प्रेत बाधाओं को समाप्त करने वाली मानी जाती हैं।
  4. मां कूष्मांडा Maa Kushmanda:
    मां कूष्मांडा देवी दुर्गा का चौथा रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। इन्हें ‘आदि शक्ति’ भी कहा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि उन्होंने ही सृष्टि की रचना की थी।
  5. मां स्कंदमाता Maa Skandmata:
    मां स्कंदमाता को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया गया है, जो सिंह पर सवार रहती हैं। नवरात्रि के पांचवें दिन इनकी पूजा होती है। स्कंदमाता को कार्तिकेय की माता कहा जाता है, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है।
  6. मां कात्यायनी Maa Katyayani:
    मां कात्यायनी देवी दुर्गा का छठा रूप हैं और नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
  7. मां कालरात्रि Maa Kalratri:
    मां कालरात्रि देवी दुर्गा का क्रूर और भयंकर रूप हैं। इनकी पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। मां कालरात्रि अज्ञान और अंधकार का नाश करने वाली देवी हैं, जो हर प्रकार की बुराइयों का अंत करती हैं।
  8. मां महागौरी Maa Mahagauri:
    महागौरी देवी दुर्गा का आठवां रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है। यह रूप शांति और करुणा का प्रतीक है। मां महागौरी अत्यंत श्वेत और निर्मल स्वरूप वाली हैं, जो अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
  9. मां सिद्धिदात्री Maa Siddidartri:
    मां सिद्धिदात्री नवरात्रि के नौवें दिन पूजी जाती हैं। वे भक्तों को सिद्धियों की प्राप्ति कराने वाली देवी हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने महाशक्ति की उपासना कर सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं, और मां सिद्धिदात्री की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

प्रत्येक दिन देवी के एक रूप की उपासना की जाती है और उन्हें प्रसन्न करने के लिए विशेष मंत्रों का जाप और अनुष्ठान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के समय मां दुर्गा पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करती हैं।

शारदीय नवरात्रि की परंपराएं | Shardiya Navratri ki Paramparayen

भारत के विभिन्न हिस्सों में नवरात्रि को विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘दुर्गा पूजा’ के रूप में मनाया जाता है, जहां मां दुर्गा की विशाल मूर्तियों की स्थापना कर उन्हें भव्य तरीके से पूजा जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया का आयोजन होता है, जहां लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनकर मां की भक्ति में नृत्य करते हैं। उत्तर भारत में देवी मंदिरों में विशेष अनुष्ठानों और कीर्तन का आयोजन होता है।

व्रत और साधना | Fsting and Meditation

नवरात्रि के दौरान भक्तजन व्रत रखते हैं और शुद्ध शाकाहारी भोजन का सेवन करते हैं। कई लोग नौ दिनों तक फलाहार करते हैं, जबकि कुछ केवल जल ग्रहण करते हैं। इस दौरान लहसुन, प्याज और मांसाहार से परहेज किया जाता है। यह व्रत न केवल शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि आत्मिक और मानसिक शुद्धि भी प्रदान करता है।

कन्या पूजन | Girl Worship

नवरात्रि के अंतिम दिन, जिसे नवमी कहा जाता है, कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। इस दिन छोटी-छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है और उन्हें भोजन कराकर उपहार दिए जाते हैं।

संस्कृति और लोककथाएं | Culture and folklore

नवरात्रि के समय कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन भी होता है, जिसमें भगवान राम के जीवन के विभिन्न प्रसंगों का मंचन किया जाता है। यह दर्शाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत कैसे होती है। इसी कारण दशहरे का उत्सव भी नवरात्रि के अगले दिन मनाया जाता है, जो रावण पर राम की विजय का प्रतीक है।

शारदीय नवरात्रि Shardiya Navratri केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और हमारी परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व हमें शक्ति, धैर्य और सदाचार की प्रेरणा देता है, और मां दुर्गा की कृपा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

नवरात्रि के इस पावन अवसर पर आइए, हम सभी मिलकर मां दुर्गा की आराधना करें और अपने जीवन को सच्चाई, धर्म और प्रेम के मार्ग पर आगे बढ़ाएं।

जय माता दी!

Navratri

Shardiya Navratri

शैलपुत्री देवी Shailputri Devi: नवरात्रि का पहला दिन और मां दुर्गा का पहला रूप First day of Navratri and First Form of Maa Durga

शैलपुत्री देवी Shailputri Devi: नवरात्रि का पहला दिन और मां दुर्गा का पहला रूप First day of Navratri and First Form of Maa Durga

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है। शैलपुत्री का अर्थ होता है ‘पहाड़ों की पुत्री’, और वे हिमालयराज की पुत्री मानी जाती हैं। इनका यह रूप प्रकृति और शक्ति का प्रतीक है, जो हमारे जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का संदेश देता है। शैलपुत्री देवी को पार्वती का अवतार भी माना जाता है, जिन्होंने पूर्वजन्म में सती के रूप में जन्म लिया था।

मां शैलपुत्री का रूप-वर्णन Description of Maa Shailputri

शैलपुत्री देवी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और सौम्य है। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं और उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल शोभित होता है। उनके इस शांत और सौम्य रूप के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

पौराणिक कथा Mythology

पुराणों के अनुसार, शैलपुत्री मां का पूर्वजन्म में नाम सती था और वे दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार सती के पिता दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान को सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में सती ने शैलराज हिमालय के घर जन्म लिया और शैलपुत्री के नाम से जानी गईं।

शैलपुत्री की पूजा का महत्व Importance of Worshiping Shailputri

नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति के भीतर साहस, धैर्य और शक्ति का संचार होता है। यह दिन नई शुरुआत का प्रतीक होता है, इसलिए इस दिन मां की पूजा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना अत्यंत शुभ माना जाता है। जो लोग इस दिन शैलपुत्री की आराधना करते हैं, उन्हें जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है।

पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर मां शैलपुत्री की पूजा आरंभ की जाती है। एक स्वच्छ स्थान पर देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित किया जाता है। फिर मां को लाल या पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं और धूप, दीप, नैवेद्य, फूल और फल आदि चढ़ाए जाते हैं। शैलपुत्री देवी का प्रिय रंग लाल माना जाता है, इसलिए लाल फूलों से मां की विशेष पूजा की जाती है।

शैलपुत्री के मंत्र Mantras of Shailputri

शैलपुत्री देवी को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से मनुष्य के सारे पाप समाप्त होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

आरती

शैलपुत्री माता की आरती भी नवरात्रि के पहले दिन अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्तजन पूरे श्रद्धा भाव से मां की आरती गाते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

माता शैलपुत्री की आरती Aarti of Mata Shailputri:

जय शैलपुत्री माता, जय शैलपुत्री माता। जो कोई तुझको ध्याता, मनवांछित फल पाता।। तेरी कृपा निराली, सब पर माता भारी। तेरी कृपा हो तो, फिर दुख कैसा हो साथी।। रिद्धि-सिद्धि सब पावे, दुख-भय मिट जाए। जो कोई मन से ध्यावे, सुख-संपत्ति पाए।। जय शैलपुत्री माता, जय शैलपुत्री माता।।

 

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा हमें आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करती है। यह दिन इस बात का प्रतीक है कि हमें अपने जीवन की कठिनाइयों का सामना धैर्यपूर्वक और दृढ़ता से करना चाहिए। मां शैलपुत्री का आशीर्वाद प्राप्त कर हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

जय शैलपुत्री माता!

Maa Brahmacharini
Shardiya Navratri

 

मां ब्रह्मचारिणी

Goddess Brahmacharini

ब्रह्मचारिणी देवी: नवरात्रि का दूसरा दिन और मां दुर्गा का दूसरा रूप

नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है “तप का आचरण करने वाली”। यह रूप देवी पार्वती का है, जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। मां ब्रह्मचारिणी के इस स्वरूप से हमें तप, संयम और साधना का संदेश मिलता है। उनका यह रूप भक्तों को त्याग, आत्म-नियंत्रण और संयम की प्रेरणा देता है।

ब्रह्मचारिणी का स्वरूप-वर्णन

मां ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत शांत और तेजस्वी है। उनके दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किया हुआ है। उनकी साधना और तपस्या का प्रतीक यह रूप हमें असीम शक्ति और आत्मबल प्रदान करता है। ब्रह्मचारिणी देवी सफेद वस्त्र धारण करती हैं, जो उनकी पवित्रता और सात्विकता का प्रतीक है।

पौराणिक कथा

ब्रह्मचारिणी देवी का यह रूप देवी पार्वती का है, जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। पुराणों के अनुसार, जब देवी पार्वती को यह ज्ञात हुआ कि वे पूर्वजन्म में सती थीं और उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था, तो उन्होंने भगवान शिव को पुनः पति रूप में पाने के लिए कठोर तप का संकल्प लिया। इस कठिन साधना और संयम के कारण उन्हें “ब्रह्मचारिणी” कहा गया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। इस दिन मां की आराधना से भक्तों को संयम, धैर्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी की साधना से जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है। जो लोग मां ब्रह्मचारिणी की भक्ति करते हैं, वे जीवन के कठिन समय में भी मानसिक रूप से दृढ़ और संतुलित रहते हैं।

पूजा विधि

नवरात्रि के दूसरे दिन, सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का आरंभ किया जाता है। मां की मूर्ति या चित्र को स्थापित कर धूप, दीप, नैवेद्य और फूल अर्पित किए जाते हैं। इस दिन श्वेत वस्त्र धारण करना और सफेद फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में विशेष रूप से चावल का भोग लगाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है।

ब्रह्मचारिणी के मंत्र

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से मन को शांति और आत्म-संयम प्राप्त होता है।

आरती

मां ब्रह्मचारिणी की आरती भी नवरात्रि के दूसरे दिन महत्वपूर्ण मानी जाती है। भक्तजन मां की आरती गाकर उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। आरती से मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति की अनुभूति होती है।

ब्रह्मचारिणी माता की आरती:

जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता, जय चंद्रघंटा सुखदाता। तुम हो करूणा की सागर, करती हो भक्तों का उद्धार।। जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता, जय चंद्रघंटा सुखदाता।।

ब्रह्मचारिणी की साधना और महत्व

मां ब्रह्मचारिणी की साधना हमें यह सिखाती है कि जीवन में किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संयम, धैर्य और तपस्या की आवश्यकता होती है। उनका तपस्विनी रूप हमें जीवन के संघर्षों में स्थिरता और आत्मबल बनाए रखने की प्रेरणा देता है। उनकी पूजा से भक्तों को कठिन समय में धैर्य और संतोष प्राप्त होता है।

मां ब्रह्मचारिणी की आराधना हमें आत्मसंयम, तपस्या और साधना का महत्व समझाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां की पूजा करने से मनुष्य के जीवन में आने वाली हर बाधा और कठिनाई का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। मां ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद हमें संयमित और शांतिपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

जय ब्रह्मचारिणी माता!

Maa chandraghanta Navratri
Shardiya Navratri

मां चंद्रघंटा

Goddess Chandraghanta

चंद्रघंटा देवी: नवरात्रि का तीसरा दिन और मां दुर्गा का तीसरा रूप

नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। चंद्रघंटा का नाम उनके मस्तक पर सुशोभित अर्धचंद्र के कारण पड़ा है। उनका यह रूप शक्ति, साहस, और शांति का अद्भुत संगम है। चंद्रघंटा देवी का यह रूप भक्तों को साहस और आत्मविश्वास देता है, साथ ही उनके जीवन से समस्त प्रकार के कष्ट, बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

चंद्रघंटा का स्वरूप-वर्णन

मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है। उनके सिर पर आधे चंद्रमा का आकार बना हुआ है, जिससे उन्हें चंद्रघंटा नाम मिला। वे सिंह पर सवार रहती हैं और उनके दस हाथों में शस्त्र होते हैं। उनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, तलवार और त्रिशूल जैसे अस्त्र होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वे अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। उनका यह रूप उग्र और शांत दोनों गुणों का प्रतीक है।

पौराणिक कथा

मां चंद्रघंटा का यह रूप देवी पार्वती से जुड़ा हुआ है। जब भगवान शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था, तब शिवजी बारात में अपनी साधारण वेशभूषा और गणों के साथ पहुंचे। भगवान शिव का यह रूप देखकर पार्वती की मां मैना अत्यंत चिंतित हो गईं। तब देवी पार्वती ने चंद्रघंटा के रूप में प्रकट होकर भगवान शिव को शांत किया और अपने सौम्य रूप से सभी को आशीर्वाद दिया। यह रूप बताता है कि मां चंद्रघंटा अपने भक्तों की किसी भी विपत्ति से रक्षा करने के लिए सदैव सजग रहती हैं।

चंद्रघंटा की पूजा का महत्व

मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है, जिससे भक्तों को साहस, धैर्य और शक्ति की प्राप्ति होती है। उनका यह रूप हमारे जीवन की सभी बाधाओं, नकारात्मकता और कष्टों को दूर करता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। उनकी पूजा से मानसिक शांति प्राप्त होती है, और व्यक्ति को संघर्षों से निपटने की शक्ति मिलती है।

पूजा विधि

नवरात्रि के तीसरे दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। पूजा के लिए देवी की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित किया जाता है और उन्हें सफेद और लाल फूल अर्पित किए जाते हैं। मां को दूध और उससे बनी मिठाई का भोग लगाया जाता है, जो उन्हें अत्यंत प्रिय है। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य, और मंत्रोच्चारण के साथ मां की आराधना की जाती है।

चंद्रघंटा के मंत्र

मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के मन से डर और भय दूर होते हैं और उसे शांति का अनुभव होता है।

आरती

मां चंद्रघंटा की आरती नवरात्रि के तीसरे दिन की पूजा का अभिन्न अंग होती है। भक्तगण पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मां की आरती गाकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मां चंद्रघंटा की आरती:

जय चंद्रघंटा माता, जय चंद्रघंटा माता। तुमको निशदिन ध्यावत, हर विष्णु विधाता।। ब्रह्माणि, रुद्राणी, तुम कमला रानी। अगम्य रूप निरखत, त्रिभुवन जानी।। जय चंद्रघंटा माता, जय चंद्रघंटा माता।।

चंद्रघंटा की साधना और महत्व

मां चंद्रघंटा की साधना करने से भक्तों को साहस और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। उनका यह उग्र रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में हर समस्या का समाधान धैर्य और शक्ति के साथ करना चाहिए। मां चंद्रघंटा की कृपा से जीवन में आने वाली हर बाधा का नाश होता है और व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल होता है।

मां चंद्रघंटा की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है। उनका आशीर्वाद प्राप्त कर भक्त अपने जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं और नकारात्मकता से मुक्ति पाते हैं। मां चंद्रघंटा का रूप हमें जीवन में साहस, धैर्य और शक्ति के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

जय चंद्रघंटा माता!

Maa Kushmanda devi Durga navmi
Shardiya Navratri

मां कूष्मांडा

Goddess Kushmanda

मां कूष्मांडा: नवरात्रि का चौथा दिन और देवी दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ रूप मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा को सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली आदि शक्ति माना जाता है। माना जाता है कि जब ब्रह्मांड में चारों ओर अंधकार था और कोई जीवन नहीं था, तब मां कूष्मांडा ने अपने दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की। उनके इस स्वरूप से सृष्टि, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

मां कूष्मांडा का स्वरूप

मां कूष्मांडा का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और ज्योतिर्मय है। उनकी आठ भुजाएं हैं, जिनमें वे कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा और जपमाला धारण करती हैं। उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। मां सिंह पर सवार रहती हैं और उनके इस रूप से सृष्टि की ऊर्जा का संचार होता है। उनके मुख पर हमेशा मधुर मुस्कान बनी रहती है, जो सृष्टि के प्रति उनका प्रेम और वात्सल्य दिखाता है। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में खुशहाली और रचनात्मकता का मूल आधार सकारात्मकता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां कूष्मांडा ने उस समय सृष्टि की रचना की, जब चारों ओर घोर अंधकार था। मां के दिव्य हंसी से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। उन्होंने ही जीवन की ऊर्जा का संचार किया और सृष्टि का संतुलन स्थापित किया। उनके इस रूप को सृष्टिकर्त्री कहा जाता है, जो कि एक सकारात्मक और रचनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व

मां कूष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार होता है। यह दिन उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होता है, जो किसी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या आर्थिक समस्या से जूझ रहे होते हैं। मां कूष्मांडा की कृपा से सभी प्रकार की समस्याएं और कष्ट दूर हो जाते हैं, और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। उनके आशीर्वाद से स्वास्थ्य में सुधार, जीवन में उन्नति और आत्मबल की वृद्धि होती है।

पूजा विधि

मां कूष्मांडा की पूजा में भक्तजन प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और मां की मूर्ति या चित्र के सामने दीप, धूप, फूल और नैवेद्य अर्पित करते हैं। इस दिन मां को विशेष रूप से कद्दू का भोग लगाना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह उनके नाम “कूष्मांड” से जुड़ा हुआ है। पूजा के दौरान मां के मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

मां कूष्मांडा का मंत्र

मां कूष्मांडा की पूजा के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी कूष्मांडायै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्तों को मां की कृपा प्राप्त होती है।

आरती

मां कूष्मांडा की आरती नवरात्रि के चौथे दिन विशेष रूप से की जाती है। इससे भक्तों को आंतरिक शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

मां कूष्मांडा की आरती:

जय कूष्मांडा माता, जय कूष्मांडा माता।
जो कोई तुझे ध्याता, सुख-समृद्धि पाता।।

तुम हो दया की सागर, मां भक्तों की भाग्य विधाता।
जो भी तुझे भजता, तू उसके कष्ट हरती।।

जय कूष्मांडा माता, जय कूष्मांडा माता।
जो कोई तुझे ध्याता, सुख-समृद्धि पाता।।

मां कूष्मांडा की साधना और महत्व

मां कूष्मांडा की साधना करने से भक्तों में सकारात्मकता, आत्मबल और रचनात्मकता का विकास होता है। उनकी कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं। मां कूष्मांडा का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है, और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

मां कूष्मांडा का यह रूप हमें जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और रचनात्मकता का महत्व समझाता है। नवरात्रि के चौथे दिन उनकी पूजा करने से हम अपने जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकते हैं। मां कूष्मांडा की कृपा से जीवन में सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है और भक्तों के जीवन में सुख-शांति का संचार होता है।

जय मां कूष्मांडा!

Shardiya Navratri Skandmata
Shardiya Navratri

मां स्कंदमाता

Goddess Skandmata

मां स्कंदमाता: नवरात्रि का पांचवा दिन और देवी दुर्गा का पंचम स्वरूप

नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पंचम रूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। मां स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता के रूप में जाना जाता है। उनका यह रूप ममता, वात्सल्य और शक्ति का प्रतीक है। मां स्कंदमाता की पूजा करने से जीवन में प्रेम, करुणा और संतान सुख की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से भक्तों की हर प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में शांति का वास होता है।

मां स्कंदमाता का स्वरूप

मां स्कंदमाता चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनकी एक भुजा में भगवान स्कंद (कार्तिकेय) बाल रूप में विराजमान होते हैं, जबकि अन्य भुजाओं में वे कमल पुष्प धारण करती हैं। मां सिंह पर सवार रहती हैं और उनका स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य होता है। उनके इस रूप को शक्ति, मातृत्व और वात्सल्य का प्रतीक माना जाता है। उनके भक्तों को यह आशीर्वाद मिलता है कि वे जीवन में किसी भी कठिनाई या संकट का सामना धैर्य और साहस के साथ कर सकें।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। जब देवताओं और असुरों के बीच घोर युद्ध हो रहा था, तब भगवान स्कंद ने देवताओं का नेतृत्व किया और असुरों का नाश किया। मां स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की मां होने के कारण इस रूप में पूजा जाता है। उनका यह रूप बच्चों के प्रति ममता और संसार में सभी जीवों के प्रति करुणा का प्रतीक है।

मां स्कंदमाता की पूजा का महत्व

मां स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और उनके जीवन में शांति और समृद्धि का वास होता है। यह दिन उन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, जो संतान से जुड़ी किसी समस्या का सामना कर रहे होते हैं। मां की कृपा से भक्तों की इच्छाएं पूर्ण होती हैं और उनके जीवन में सुख-शांति का संचार होता है। उनके आशीर्वाद से समस्त प्रकार के मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।

पूजा विधि

मां स्कंदमाता की पूजा विधि अत्यंत सरल है। प्रातः स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और मां की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप, धूप, फूल और नैवेद्य अर्पित करें। इस दिन मां को विशेष रूप से केले का भोग लगाना शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान मां स्कंदमाता के मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

मां स्कंदमाता का मंत्र

मां स्कंदमाता की पूजा के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है।

आरती

मां स्कंदमाता की आरती नवरात्रि के पांचवें दिन विशेष रूप से की जाती है। आरती से भक्तों को मां की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मां स्कंदमाता की आरती:

जय स्कंद माता, जय स्कंद माता।
तुम हो स्नेह की दाता, जो भी तुझे ध्याता।।संसार के कष्ट मिटाती, जो कोई शरण में आता।
प्रेम की तू देवी, सबकी बिगड़ी बात बनाती।।

जय स्कंद माता, जय स्कंद माता।
तुम हो स्नेह की दाता, जो भी तुझे ध्याता।।

 

मां स्कंदमाता की साधना और महत्व

मां स्कंदमाता की साधना करने से भक्तों को आंतरिक शांति और सकारात्मकता की प्राप्ति होती है। उनके आशीर्वाद से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और परिवार में सुख-शांति का वास होता है। उनके भक्तों को संतान सुख, सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। मां स्कंदमाता की कृपा से जीवन में संघर्षों का सामना करने की शक्ति मिलती है और वे अपने भक्तों को हर प्रकार की पीड़ा से मुक्त करती हैं।

मां स्कंदमाता का यह रूप हमें मातृत्व, करुणा और शक्ति का महत्व सिखाता है। नवरात्रि के पांचवें दिन उनकी पूजा से हम अपने जीवन में सुख-शांति और संतान सुख प्राप्त कर सकते हैं। मां स्कंदमाता की कृपा से सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है।

जय मां स्कंदमाता!

Maa Katyayani Devi - Navratri
Shardiya Navratri

मां कात्यायनी

Goddess Katyayani

मां कात्यायनी: नवरात्रि का छठा दिन और देवी दुर्गा का षष्ठम स्वरूप

नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के षष्ठम रूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी को साहस, वीरता और युद्ध की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे उन भक्तों के लिए विशेष रूप से पूजनीय हैं, जो अपने जीवन में साहस, शक्ति और सुरक्षा चाहते हैं। मां कात्यायनी की पूजा करने से जीवन में शत्रुओं का नाश होता है और सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। उनका यह रूप शक्ति, दृढ़ता और साहस का प्रतीक है।

मां कात्यायनी का स्वरूप

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है। वे चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प शोभायमान होता है। उनके अन्य दो हाथ आशीर्वाद और अभय मुद्रा में होते हैं, जो उनके भक्तों को सुरक्षा और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। मां कात्यायनी सिंह पर सवार होती हैं, जो उनकी शक्ति और वीरता को दर्शाता है। उनका यह स्वरूप बुराई का नाश करने और धर्म की रक्षा करने का प्रतीक है।

पौराणिक कथा

मां कात्यायनी की उत्पत्ति के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने देवी दुर्गा की कठोर तपस्या की और उनसे यह वरदान मांगा कि वे उनकी पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी दुर्गा ने महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया। इसी कारण उनका नाम कात्यायनी पड़ा। मां कात्यायनी का जन्म महिषासुर का वध करने के लिए हुआ था। उन्होंने महिषासुर का नाश कर देवताओं को दैत्यों के आतंक से मुक्ति दिलाई थी।

मां कात्यायनी की पूजा का महत्व

मां कात्यायनी की पूजा करने से जीवन में साहस, शक्ति और सुरक्षा की प्राप्ति होती है। यह दिन उन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो शत्रुओं से परेशान हैं या जीवन में किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। मां कात्यायनी की कृपा से शत्रुओं का नाश होता है, और भक्तों को जीवन में विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन अविवाहित कन्याओं के लिए भी मां की पूजा विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है। माना जाता है कि मां कात्यायनी की पूजा से विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

पूजा विधि

मां कात्यायनी की पूजा विधि में भक्तजन सुबह स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। मां की मूर्ति या चित्र के सामने दीप, धूप, फूल और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इस दिन मां को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान मां कात्यायनी के मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

मां कात्यायनी का मंत्र

मां कात्यायनी की पूजा के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्तों को मां की कृपा प्राप्त होती है।

आरती

मां कात्यायनी की आरती नवरात्रि के छठे दिन विशेष रूप से की जाती है। आरती से भक्तों को मां की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मां कात्यायनी की आरती:

जय कात्यायनी माता, जय कात्यायनी माता।
सर्व सिद्धि की दाता, जो कोई तुझे ध्याता।।
ऋषि मुनि तुझे ध्याते, देव भी शीश नवाते।
तेरे महिमा का गान करें, भक्त सभी सुख पाते।।
जय कात्यायनी माता, जय कात्यायनी माता।
सर्व सिद्धि की दाता, जो कोई तुझे ध्याता।।

मां कात्यायनी की साधना और महत्व

मां कात्यायनी की साधना करने से भक्तों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और शत्रुओं का नाश होता है। मां कात्यायनी की पूजा से भक्तों में साहस और आत्मविश्वास का विकास होता है, जिससे वे जीवन के सभी संघर्षों का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं। अविवाहित कन्याओं के लिए मां कात्यायनी की पूजा विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है, जिससे विवाह में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त होती हैं और शीघ्र विवाह का योग बनता है।

मां कात्यायनी का यह रूप हमें साहस, शक्ति और आत्मविश्वास का महत्व सिखाता है। नवरात्रि के छठे दिन उनकी पूजा से हम अपने जीवन में शत्रुओं का नाश कर सकते हैं और साहस के साथ सभी कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं। मां कात्यायनी की कृपा से जीवन में विजय, शांति और समृद्धि का वास होता है।

जय मां कात्यायनी!

Navdurga Maa Kalratri
Shardiya Navratri

मां कालरात्रि

Goddess Kalratri

मां कालरात्रि: नवरात्रि का सातवां दिन और देवी दुर्गा का सप्तम स्वरूप

नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के सप्तम रूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि को विनाश और अज्ञानता को नष्ट करने वाली देवी माना जाता है। उनका स्वरूप देखने में भयंकर है, लेकिन वे अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल देने वाली हैं, इसलिए उन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहा जाता है। मां कालरात्रि की पूजा करने से सभी प्रकार के भय, बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।

मां कालरात्रि का स्वरूप

मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर और उग्र है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे एक हाथ में खड्ग और दूसरे में लोहे का कांटा धारण करती हैं, जबकि बाकी दो हाथ वरद और अभय मुद्रा में होते हैं। उनका वर्ण काला है और उनके बाल बिखरे हुए हैं। उनकी तीन आंखें हैं, जो सूर्य, चंद्र और अग्नि के समान तेजस्वी हैं। मां कालरात्रि गधे पर सवार होती हैं और उनकी नासिका से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं। उनका यह स्वरूप अज्ञानता और बुराई का विनाश करने के लिए है।

पौराणिक कथा

मां कालरात्रि के जन्म से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है। जब महिषासुर और अन्य दानवों के अत्याचारों से देवता परेशान हो गए, तब मां दुर्गा ने अपने उग्र रूप कालरात्रि को प्रकट किया। मां कालरात्रि ने अपनी भयंकर शक्ति से दानवों का संहार किया और संसार को उनके आतंक से मुक्त किया। उनका यह रूप हमें यह सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है। मां कालरात्रि अंधकार को मिटाकर ज्ञान और प्रकाश का संचार करती हैं।

मां कालरात्रि की पूजा का महत्व

मां कालरात्रि की पूजा करने से जीवन में सभी प्रकार के भय, शत्रु और बाधाओं का नाश होता है। उनका यह रूप भक्तों को साहस और शक्ति प्रदान करता है, जिससे वे हर संकट का सामना कर सकें। इस दिन मां की पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होती है, जो मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान हैं या जीवन में किसी प्रकार की बाधा का सामना कर रहे हैं। मां कालरात्रि की कृपा से सभी संकट दूर होते हैं और भक्तों को समस्त प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

पूजा विधि

मां कालरात्रि की पूजा विधि में भक्तजन सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और मां की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप, धूप, फूल और नैवेद्य अर्पित करते हैं। इस दिन मां को गुड़ का भोग लगाना शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

मां कालरात्रि का मंत्र

मां कालरात्रि की पूजा के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी कालरात्र्यै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को मां की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

आरती

मां कालरात्रि की आरती नवरात्रि के सातवें दिन विशेष रूप से की जाती है। आरती से भक्तों को मां की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मां कालरात्रि की आरती:

जय कालरात्रि माता, जय कालरात्रि माता।
तुम हो शुभ फल दाता, जो कोई तुझे ध्याता।।

तेरा भयंकर रूप, दैत्यों का करे विनाश।
भक्तों की रक्षा करती, माता तुझसे सबकी आस।।

जय कालरात्रि माता, जय कालरात्रि माता।
तुम हो शुभ फल दाता, जो कोई तुझे ध्याता।।

मां कालरात्रि की साधना और महत्व

मां कालरात्रि की साधना करने से भक्तों के जीवन में आने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में अंधकार का नाश करके प्रकाश और सकारात्मकता का संचार करना आवश्यक है। मां कालरात्रि की कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और शत्रु समाप्त होते हैं और भक्तों को मानसिक शांति, साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।

मां कालरात्रि का यह उग्र रूप हमें जीवन में साहस, शक्ति और निडरता का महत्व सिखाता है। नवरात्रि के सातवें दिन उनकी पूजा से हम अपने जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं और भय का अंत कर सकते हैं। मां कालरात्रि की कृपा से जीवन में शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है, और भक्तों को जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

जय मां कालरात्रि!

Sharadiya Navratri Maa Mahagauri
Shardiya Navratri

मां महागौरी

Goddess Mahagauri

मां महागौरी: नवरात्रि का आठवां दिन और देवी दुर्गा का अष्टम स्वरूप

नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के अष्टम रूप मां महागौरी की पूजा की जाती है। मां महागौरी का यह स्वरूप सौंदर्य, शांति, करुणा और पवित्रता का प्रतीक है। उनका रंग अत्यंत गोरा और चमकदार है, इसलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है। उनकी पूजा करने से जीवन में पवित्रता, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। मां महागौरी का यह रूप अत्यंत कोमल, शांत और दयालु है, जो अपने भक्तों को सुख, शांति और मन की शुद्धता प्रदान करती हैं।

मां महागौरी का स्वरूप

मां महागौरी अत्यंत सौम्य और कोमल स्वरूप की देवी हैं। उनका रंग पूर्ण रूप से गोरा है, और वे सफेद वस्त्र धारण करती हैं। मां महागौरी की चार भुजाएं हैं। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू होता है, जबकि अन्य दो हाथ अभय और वरद मुद्रा में होते हैं। वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं, जो उनके इस रूप को ‘वृषारूढ़ा’ भी कहलाता है। उनका यह रूप शांति, करुणा और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है।

पौराणिक कथा

मां महागौरी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। कई वर्षों तक घोर तपस्या करने के कारण उनका शरीर काला पड़ गया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया और अपने गंगाजल से उनका शरीर धोया, जिससे उनका रंग अत्यंत गोरा हो गया। तभी से वे महागौरी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उनका यह स्वरूप हमें तपस्या, शुद्धि और समर्पण का महत्व सिखाता है।

मां महागौरी की पूजा का महत्व

मां महागौरी की पूजा करने से सभी प्रकार के पाप, कष्ट और दुख समाप्त हो जाते हैं। उनकी कृपा से भक्तों के जीवन में शांति, समृद्धि और सुख का वास होता है। इस दिन मां की पूजा विशेष रूप से उन भक्तों के लिए लाभकारी मानी जाती है, जो जीवन में मानसिक शांति और पवित्रता की प्राप्ति चाहते हैं। मां महागौरी की पूजा से जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं समाप्त होती हैं और शुद्धता का संचार होता है। उनके आशीर्वाद से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में संतोष और शांति का वास होता है।

पूजा विधि

मां महागौरी की पूजा विधि में भक्तजन प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और मां की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप, धूप, फूल और नैवेद्य अर्पित करते हैं। इस दिन मां को नारियल का भोग विशेष रूप से लगाया जाता है। पूजा के दौरान मां महागौरी के मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

मां महागौरी का मंत्र

मां महागौरी की पूजा के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी महागौर्यै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को शांति और पवित्रता की प्राप्ति होती है और उनके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

आरती

मां महागौरी की आरती नवरात्रि के आठवें दिन विशेष रूप से की जाती है। आरती से भक्तों को मां की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मां महागौरी की आरती:

जय महागौरी माता, जय महागौरी माता।
तुमको निशदिन ध्याता, जो कोई मन से गाता।।
रिद्धि-सिद्धि सब पाते, दुखिया दूर भगाते।
जो तुमको शरण में आते, संकट से ना घबराते।।
जय महागौरी माता, जय महागौरी माता।
तुमको निशदिन ध्याता, जो कोई मन से गाता।।

मां महागौरी की साधना और महत्व

मां महागौरी की साधना करने से भक्तों के जीवन में पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उनकी कृपा से सभी प्रकार की मानसिक और शारीरिक समस्याएं दूर होती हैं और जीवन में शांति और संतोष का अनुभव होता है। मां महागौरी की पूजा से मन शुद्ध होता है और भक्तों के जीवन में संतुलन और शांति का वास होता है। उनके भक्तों को जीवन में सभी इच्छाएं पूर्ण करने की शक्ति मिलती है और वे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।

मां महागौरी का यह रूप हमें जीवन में पवित्रता, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का महत्व सिखाता है। नवरात्रि के आठवें दिन उनकी पूजा से हम अपने जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं और कष्टों का अंत कर सकते हैं और शांति व समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। मां महागौरी की कृपा से जीवन में संतोष, सुख और समृद्धि का वास होता है।

जय मां महागौरी!

Shardiya Navratri Maa Siddartri
Shardiya Navratri

मां सिद्धिदात्री

Goddess Siddarthi

मां सिद्धिदात्री: नवरात्रि का नवां दिन और देवी दुर्गा का नवम स्वरूप

नवरात्रि के नवें दिन मां दुर्गा के नवम रूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री का यह रूप अद्भुत शक्तियों और सिद्धियों का प्रतीक है। वे सभी सिद्धियों की दात्री हैं, अर्थात् वे भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाली देवी हैं। उनकी कृपा से भक्तों को सभी सांसारिक और आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति होती है। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप सौम्य और दिव्य है। वे चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनके एक हाथ में गदा, दूसरे में चक्र, तीसरे में शंख और चौथे हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित होता है। वे कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और उनका वाहन सिंह है। मां सिद्धिदात्री का यह स्वरूप दिव्यता और शांति का प्रतीक है। उनका आशीर्वाद भक्तों को जीवन में सभी सिद्धियों की प्राप्ति कराता है, जिससे वे संसार के सभी कष्टों और समस्याओं से मुक्त हो जाते हैं।

पौराणिक कथा

मां सिद्धिदात्री से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने उनकी कृपा से सभी सिद्धियों की प्राप्ति की थी। देवी सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी के रूप में परिवर्तित हुआ, जिसे अर्धनारीश्वर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा से भक्तों को आठ प्रमुख सिद्धियों की प्राप्ति होती है, जो हैं: अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। इन सिद्धियों की प्राप्ति से मनुष्य हर प्रकार की इच्छाओं को पूरा कर सकता है और संसार में सुखपूर्वक जीवन जी सकता है।

मां सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व

मां सिद्धिदात्री की पूजा से भक्तों को जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। उनकी कृपा से व्यक्ति को सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति होती है, चाहे वह सांसारिक हो या आध्यात्मिक। इस दिन मां की पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी मानी जाती है, जो आत्मज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं या जीवन में सफलता और समृद्धि की कामना करते हैं। मां सिद्धिदात्री की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं और उसकी सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।

पूजा विधि

मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि में भक्तजन प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और मां की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप, धूप, फूल और नैवेद्य अर्पित करते हैं। इस दिन मां को तिल और नारियल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान मां सिद्धिदात्री के मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

मां सिद्धिदात्री का मंत्र

मां सिद्धिदात्री की पूजा के समय निम्नलिखित मंत्र का जाप किया जाता है:

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।

इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को मां की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

आरती

मां सिद्धिदात्री की आरती नवरात्रि के नवें दिन विशेष रूप से की जाती है। आरती से भक्तों को मां की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मां सिद्धिदात्री की आरती:

जय सिद्धिदात्री माता, जय सिद्धिदात्री माता।
तुम हो सिद्धि की दाता, जो कोई तुम्हें ध्याता।।
रिद्धि-सिद्धि सब पाते, दुखिया दूर भगाते।
जो तुमको शरण में आते, सभी कष्ट मिटाते।।
जय सिद्धिदात्री माता, जय सिद्धिदात्री माता।
तुम हो सिद्धि की दाता, जो कोई तुम्हें ध्याता।।

मां सिद्धिदात्री की साधना और महत्व

मां सिद्धिदात्री की साधना करने से भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और वह सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति करता है। मां सिद्धिदात्री की कृपा से भक्तों के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और वे सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करते हैं। उनके भक्तों को जीवन में आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग प्राप्त होता है और वे सभी सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं।

मां सिद्धिदात्री का यह रूप हमें जीवन में सिद्धियों और सफलता का महत्व सिखाता है। नवरात्रि के नवें दिन उनकी पूजा से हम अपने जीवन में सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति कर सकते हैं और सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। मां सिद्धिदात्री की कृपा से जीवन में हर प्रकार की इच्छाएं पूरी होती हैं और भक्तों को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जय मां सिद्धिदात्री!


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Pitra Paksha Shradh: पितृ पक्ष में कैसे करें पितरों का श्राद्ध: एक संपूर्ण मार्गदर्शिका / How to Perform Shradh Ritual During Pitru Paksha: A Complete Guide भारत में पितृ पक्ष Pitru Paksha (श्राद्ध पक्ष Shradh Paksha) का विशेष महत्व है। यह 15 दिनों का वह समय होता है जब हम अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और…

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